दोहा- दशक, Chapter -10
दोहा- दशक, Chapter -10
अभ्यासमाला (कवि बिहारीलाल)
१. सही विकल्प का चयन करो:
(क) कवि बिहारीलाल किस काल के सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते हैं?
Ans.रीतिकाल के
(ख) कविवर बिहारी की काव्य-प्रतिभा से प्रसन्न होने वाले मुगल सम्राट थे –
Ans.शाहजहाँ
(ग) कवि बिहारी का देहावसान कब हुआ?
Ans .1663 ई. को
(घ) श्रीकृष्ण के सिर पर क्या शोभित है?
Ans.मुकुट
(ङ) कवि बिहारी ने किन्हें सदा साथ रहने वाली संपत्ति माना है?
Ans.यदुपति कृष्ण को
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२. निम्नलिखित कथन शुद्ध हैं या अशुद्ध, बताओ:
(क) हिन्दी के समस्त कवियों में भी बिहारीलाल अग्रिम पंक्ति के अधिकारी हैं।
Ans.शुद्ध
(ख) कविवर बिहारी को संस्कृत और प्राकृत के प्रसिद्ध काव्य-ग्रंथों के अध्ययन का अवसर प्राप्त नहीं हुआ था।
Ans .अशुद्ध
(ग) 1645 ई. के आस-पास कवि बिहारी वृत्ति लेने जयपुर पहुँचे थे।
Ans.शुद्ध
(घ) कवि बिहारी के अनुसार ओछा व्यक्ति भी बड़ा बन सकता है।
Ans.अशुद्ध
(ङ) कवि बिहारी का कहना है कि दुर्दशाग्रस्त होने पर भी धन का संचय करते रहना कोई नीति नहीं है।
Ans.शुद्ध
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३. पूर्ण वाक्य में उत्तर दो:
(क) कवि बिहारी ने मुख्य रूप से कैसे दोहों की रचना की है?
Ans.कवि बिहारी ने मुख्य रूप से भक्तिपरक, नीतिपरक तथा श्रृंगारपरक दोहों की रचना की है।
(ख) कविवर बिहारी किनके आग्रह पर जयपुर में ही रुक गए?
Ans.कविवर बिहारी महाराजा जयसिंह के आग्रह पर जयपुर में ही रुक गए।
(ग) कवि बिहारी की ख्याति का एकमात्र आधार-ग्रंथ किस नाम से प्रसिद्ध है?
Ans.कवि बिहारी की ख्याति का एकमात्र आधार-ग्रंथ ‘बिहारी सतसई’ नाम से प्रसिद्ध है।
(घ) किसमें किससे सौ गुनी अधिक मादकता होती है?
Ans सोने (धन-संपत्ति) में धतूरे से सौ गुनी अधिक मादकता होती है।
(ङ) कवि ने गोपीनाथ कृष्ण से क्या-क्या न गिनने की प्रार्थना की है?
Ans.कवि ने गोपीनाथ कृष्ण से अपने गुण-अवगुणों के समूहों को न गिनने की प्रार्थना की है।
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४. अति संक्षेप्त में उत्तर दो (लगभग २५ शब्दों में):
(क) किस परिस्थिति में कविवर बिहारी काव्य-रचना के लिए जयपुर में ही रुक गए थे?
Ans.महाराजा जयसिंह नवविवाहिता रानी के प्रेम में राजकाज छोड़कर लगे हुए थे। कविवर बिहारी ने एक दोहा लिखकर उन्हें सावधान किया। इससे प्रसन्न होकर महाराजा ने उन्हें सम्मान दिया और काव्य-रचना के लिए आग्रह किया, जिससे बिहारी वहीं रुक गए।
(ख) ‘यहि बानक मो मन बसौ, सदा बिहारीलाल’ का भाव क्या है?
Ans.इस पंक्ति का भाव यह है कि मुकुटधारी, मुरलीधर श्रीकृष्ण का रूप सदा उनके मन में बसा रहे।
(ग) ‘ज्यों-ज्यों बूड़ै स्याम रंग, त्यों-त्यों उज्जलु होई’ का आशय स्पष्ट करो।
Ans.इसका आशय है कि अनुरागी मन जैसे-जैसे कृष्ण-प्रेम में डूबता है, वैसे-वैसे वह और अधिक पवित्र होता जाता है।
(घ) ‘आँटे पर प्रानन हरै, काँटे लौं लगि पाय’ के जरिए कवि क्या कहना चाहते हैं?
Ans.कवि कहना चाहते हैं कि दुर्जन व्यक्ति नए रूप में भले ही नम्र लगें, पर उन पर विश्वास नहीं करना चाहिए।
(ङ) ‘मन काँचै नाचै बृथा, साँचै राँचै राम’ – का तात्पर्य बताओ।
Ans.इस दोहे का तात्पर्य है कि जब तक मन सच्चा और स्थिर नहीं है, तब तक पूजा-पाठ व्यर्थ है।
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५. संक्षेप्त में उत्तर दो (लगभग ५० शब्दों में):
(क) कवि के अनुसार अनुरागी चित्त का स्वभाव कैसा होता है?
Ans.अनुरागी चित्त का स्वभाव विलक्षण होता है। कृष्ण-प्रेम में डूबने पर वह और अधिक पवित्र होता जाता है।
(ख) सज्जन का स्नेह कैसा होता है?
Ans.सज्जन का स्नेह गंभीर और गहरा होता है। उसका रंग मंजीठ के रंग की तरह कभी फीका नहीं पड़ता, भले ही वस्त्र पुराना हो जाए।
(ग) धन के संचय के संदर्भ में कवि ने कौन-सा उपदेश दिया है?
Ans.कवि ने कहा है कि धन का संचय करना नीति नहीं है। यदि खाने और खर्च करने के बाद भी कुछ बच जाए, तो संचय उचित है।
(घ) दुर्जन के स्वभाव के बारे में कवि ने क्या कहा है?
Ans.कवि ने कहा है कि दुर्जन का स्वभाव दुस्सह होता है। वे नए रूप में भरोसे योग्य नहीं होते और अवसर मिलते ही हानि पहुँचाते हैं।
(ङ) कवि बिहारी किस वेश में अपने आराध्य कृष्ण को मन में बसा लेना चाहते हैं?
Ans.कवि बिहारी श्रीकृष्ण को मुकुटधारी, पीतांबरधारी, मुरलीधर और वैजयंतीमाला से सुशोभित रूप में मन में बसाना चाहते हैं।
(च) अपने उद्धार के प्रसंग में कवि ने गोपीनाथ कृष्णजी से क्या निवेदन किया है?
Ans.कवि ने गोपीनाथ से निवेदन किया है कि वे उनके गुण-अवगुण न गिनें और पतितपावन स्वभाव से उनका उद्धार करें।
(छ) कवि बिहारी की लोकप्रियता पर एक संक्षिप्त टिप्पणी प्रस्तुत करो।
Ans.कवि बिहारीलाल रीतिकाल के सर्वश्रेष्ठ कवि हैं। उनका प्रसिद्ध ग्रंथ ‘बिहारी सतसई’ भक्ति, नीति और श्रृंगार के सुंदर समन्वय के कारण आज भी लोकप्रिय है।
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६. सम्यक् उत्तर दो (लगभग १०० शब्दों में):
(ग) कवि बिहारी ने अपने भक्तिपरक दोहों के माध्यम से क्या कहा है?
Ans.कवि बिहारी ने अपने भक्तिपरक दोहों में ईश्वर के प्रति अनन्य प्रेम और बाहरी आडंबर की निरर्थकता को दिखाया है। उन्होंने कहा कि जप-माला, तिलक, छाप जैसे बाहरी कर्म व्यर्थ हैं यदि मन सच्चा नहीं है। उनका अनुरागी चित्त कृष्ण-प्रेम में डूबकर और उज्ज्वल होता जाता है। वे कृष्ण को अपनी एकमात्र संपत्ति मानते हैं और उनसे अपने गुण-अवगुण न गिनने की प्रार्थना करते हैं। इससे उनकी गहरी भक्ति और दीनता प्रकट होती है।
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७. सप्रसंग व्याख्या करो (लगभग १०० शब्दों में):
(ग) ‘कनक कनक तैं सौ गुनी… इहिं पाएँ बौराइ ॥’
Ans.प्रसंग – यह दोहा नीतिपरक है, जिसमें कवि ने धन के अहंकार की अधिकता का उल्लेख किया है।
व्याख्या – कवि कहते हैं कि सोने में धतूरे से सौ गुनी अधिक मादकता है। धतूरा खाने पर उन्माद होता है, पर सोना पाते ही मनुष्य पागल हो जाता है। इसका भाव है कि धन का नशा धतूरे के नशे से अधिक खतरनाक है।
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भाषा एवं व्याकरण ज्ञान
(क) संधि-विच्छेद:
देहावसान – देह + अवसान
लोकोक्ति – लोक + उक्ति
उज्ज्वल – उत् + ज्वल
सज्जन – सत् + जन
दुर्जन – दु: + जन (या दुर् + जन)
(ख) विलोम शब्द:
अनुराग – विराग
पाप – पुण्य
गुण – अवगुण
प्रेम – घृणा
सज्जन – दुर्जन
मित्र – शत्रु
गगन – पृथ्वी
श्रेष्ठ – निकृष्ट
(ग) दोहों का गद्य रूप:
१. मीत न नीत गलीत, जो धरियै धन जोरि । खाए खरचैं जो जुरै, तौ जोरिए करोरि ॥
धन जोड़कर रखना कोई अच्छी नीति नहीं है। यदि खाने और खर्च करने के बाद भी कुछ बच जाए, तो करोड़ों जोड़ो।
२. न ए बिससिये लखि नये, दुर्जन दुसह सुभाय । आँटे पर प्रानन हरै, काँटे लौं लगि पाय ॥
दुर्जन व्यक्ति नए रूप में भले ही भले लगें, पर उनका स्वभाव बुरा होता है। वे अवसर मिलने पर काँटे की तरह हानि पहुँचाते हैं।
(घ) समास:
सतसई – सात सौ दोहों का समूह – द्विगु समास
गोपीनाथ – गोपियों के नाथ – तत्पुरुष समास
गुन-औगुन – गुण और अवगुण – द्वंद्व समास
काव्य-रसिक – काव्य में रसिक – तत्पुरुष समास
आजीवन – जीवन भर – अव्ययीभाव समास
(ङ) शब्द-जोड़े का अंतर:
कनक-कनक – सोना / धतूरा
हार-हार – पराजय / माला
स्नेह-स्नेह – तेल / प्रेम
हल-हल – हल (कृषि उपकरण) / विष
कल-कल – मशीन / जल की मधुर ध्वनि
