मृत्तिका ,Chapter -12, SEBA , NCERT, CBSE

मृत्तिका ,Chapter -12

मृत्तिका ,Chapter -12

अभ्यासमाला के प्रश्नों के उत्तर दिए गए हैं।
अभ्यासमाला: बोध एवं विचार
1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक या दो वाक्यों में दो:
(क) रौंदे और जोते जाने पर भी मिट्टी किस रूप में बदल जाती है?
उत्तर: रौंदे और जोते जाने पर मिट्टी धन-धान्य बनकर मातृरूपा में बदल जाती है।
(ख) मिट्टी के ‘मातृरूपा’ होने का क्या आशय है?
उत्तर: मिट्टी के ‘मातृरूपा’ होने का आशय है कि जब मनुष्य उसे हल से जोतता और पैरों से रौंदता है, तब वह फसल और अनाज देकर माँ के समान पोषण करती है और जीवन देती है।
(ग) जब मनुष्य उद्यमशील रहकर अपने अहंकार का परित्याग करता है तो मिट्टी उसके लिए क्या बन जाती है?
उत्तर: जब मनुष्य उद्यमशील रहकर अपने अहंकार का परित्याग करता है, तो मिट्टी उसके लिए अपने ग्राम्य देवत्व के साथ चिन्मयी शक्ति बन जाती है (प्रतिमा बन उसकी आराध्य हो जाती है)।
2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखो:
(क) ‘मृत्तिका’ कविता में पुरुषार्थी मनुष्य के हाथों आकार पाती मिट्टी के किन-किन स्वरूपों का उल्लेख किया गया है?
उत्तर: ‘मृत्तिका’ कविता में पुरुषार्थी मनुष्य के हाथों आकार पाती मिट्टी के निम्नलिखित चार स्वरूपों का उल्लेख किया गया है:
* मातृरूपा: जब मनुष्य उसे जोतकर खेती करता है, तो वह धन-धान्य बनकर माँ के समान पोषण देती है।
* अंतरंग प्रिया: जब मनुष्य उसे हाथों से स्पर्श करके चाक पर घुमाता है, तो वह कुंभ और कलश बनकर जल लाती हुई उसकी घनिष्ठ प्रेमिका (प्रिया) बन जाती है।
* प्रजारूपा: जब मनुष्य (शिशु) मेले में उसके खिलौने रूप पर आकर्षित होते हैं, तो वह खिलौने बनकर उनके शिशु-हाथों में पहुँचकर संतान (प्रजा) के समान हो जाती है।
* चिन्मयी शक्ति: जब मनुष्य अपने पुरुषार्थ द्वारा अहंकार का त्याग कर उसे पुकारता है, तो वह ग्राम्य देवत्व के साथ चेतनमयी शक्ति (आराध्य प्रतिमा) बन जाती है।
(ख) मिट्टी के किस रूप को ‘प्रिय रूप’ माना है? क्यों?
उत्तर: मिट्टी के कुंभ और कलश रूप को ‘प्रिय रूप’ माना गया है।
कारण: इस रूप में वह जल भरकर मनुष्य के पास आती है और उसकी अंतरंग प्रिया बन जाती है। जल जीवन का आधार है और इस रूप में वह जीवन में सरसता का संचार करती है, जिससे उसका यह रूप आत्मीय और प्रिय बन जाता है।
(ग) मिट्टी प्रजारूपा कैसे हो जाती है?
उत्तर: मिट्टी प्रजारूपा तब हो जाती है जब मनुष्य मेले में उसके खिलौने रूप पर आकर्षित होकर मचलने लगते हैं। इस समय वह खिलौनों के रूप में ढल जाती है और मनुष्य के शिशु-हाथों में पहुँचकर उनकी संतान या प्रजा के समान हो जाती है, जिसे बच्चे प्यार से खेलते हैं।
(घ) पुरुषार्थ को सबसे बड़ा देवत्व क्यों कहा गया है?
उत्तर: पुरुषार्थ को सबसे बड़ा देवत्व कहा गया है क्योंकि कविता के अनुसार मनुष्य का पुरुषार्थ ही मिट्टी को स्वरूप प्रदान करता है और उसे देवत्व (शक्ति, प्रतिमा, मातृरूपा, प्रिय रूपा) में बदल देता है। यह विश्वास ही सबसे बड़ा देवत्व है कि एक पुरुषार्थ करने वाला मनुष्य है और दूसरी स्वरूप पाती हुई मिट्टी है, जिसके कारण ही मानव का अस्तित्व संभव है।
(ङ) मिट्टी और मनुष्य में तुम किसकी भूमिका को अधिक महत्वपूर्ण मानते हो और क्यों?
उत्तर: (यह एक वैयक्तिक प्रश्न है, जिसका उत्तर कविता के भाव के अनुरूप दिया जा रहा है।)
हम मनुष्य की भूमिका को अधिक महत्वपूर्ण मानते हैं।
कारण:
कविता में कहा गया है, “विश्वास करो / यह सबसे बड़ा देवत्व है, कि / तुम पुरुषार्थ करते मनुष्य हो / और मैं स्वरूप पाती मृत्तिका”। कवि के अनुसार, मिट्टी को अलग-अलग स्वरूपों में ढालने वाली शक्ति मनुष्य का पुरुषार्थ ही है। मिट्टी तो केवल आधार (मृत्तिका) है, लेकिन उसे धन-धान्य (मातृरूपा), जलपात्र (प्रिया), खिलौना (प्रजा) या प्रतिमा (चिन्मयी शक्ति) बनाने वाला और उसे अर्थ प्रदान करने वाला मनुष्य का उद्योग और उद्यम है। इसलिए कर्ता होने के नाते मनुष्य की भूमिका अधिक महत्वपूर्ण है।
3. सप्रसंग व्याख्या करो:
(क) पर जब भी तुम
अपने पुरुषार्थ-पराजित स्वत्व से मुझे पुकारते हो
तब मैं –
अपने ग्राम्य देवत्व के साथ चिन्मयी शक्ति हो जाती हूँ।
संदर्भ (Reference):
यह पद्यांश नरेश मेहता द्वारा रचित कविता ‘मृत्तिका’ से लिया गया है।
प्रसंग (Context):
इन पंक्तियों में कवि ने मिट्टी के चौथे और अंतिम स्वरूप का वर्णन किया है। यह वह अवस्था है जब मनुष्य अपने सारे अहंकार और स्वार्थ को त्यागकर केवल अपने परिश्रम और उद्योग की भावना से मिट्टी को देखता है।
व्याख्या (Explanation):
कवि मिट्टी के मुख से कहलवाते हैं कि जब भी मनुष्य अपने उद्योग या उद्यम (पुरुषार्थ) से अपने अहंकार (स्वत्व) को जीतकर या त्यागकर मुझे पुकारता है, तब मैं केवल भौतिक वस्तु न रहकर एक दैवी शक्ति में बदल जाती हूँ। मैं अपने साधारण ग्राम्य देवत्व (लोक देवता के रूप) के साथ मिलकर चिन्मयी शक्ति (चेतनमयी, ईश्वर की सत्ता) हो जाती हूँ। इसका अर्थ है कि मनुष्य जब अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर कार्य करता है, तब मिट्टी की साधारण मूर्ति भी उसकी आराध्य बन जाती है, जो उसे असीम शक्ति और विश्वास प्रदान करती है।
(ख) यह सबसे बड़ा देवत्व है, कि
तुम पुरुषार्थ करते मनुष्य हो
और मैं स्वरूप पाती मृत्तिका।
संदर्भ (Reference):
यह पद्यांश नरेश मेहता द्वारा रचित कविता ‘मृत्तिका’ की अंतिम पंक्तियाँ हैं।
प्रसंग (Context):
इन पंक्तियों में कवि ने मनुष्य के पुरुषार्थ और मिट्टी के स्वरूप-ग्रहण के संबंध को देवत्व की संज्ञा दी है और कविता के मूल विचार को स्पष्ट किया है।
व्याख्या (Explanation):
कवि कहते हैं कि तुम इस बात पर विश्वास करो, यही संसार का सबसे बड़ा देवत्व है। यह देवत्व कोई अलौकिक या रहस्यमयी वस्तु नहीं है, बल्कि यह वह सत्य है कि मनुष्य उद्यम और उद्योग (पुरुषार्थ) करने वाला प्राणी है, और मिट्टी उसके पुरुषार्थ से विभिन्न स्वरूपों (मातृरूपा, प्रिया, प्रजा, शक्ति) को धारण करती है। कवि के अनुसार, जीवन और सृष्टि की सारी सफलता इसी क्रियात्मक संबंध में निहित है, जहाँ मनुष्य अपने श्रम से मिट्टी को मूल्यवान बनाता है। पुरुषार्थ ही वह शक्ति है जो मिट्टी जैसी जड़ वस्तु को जीवन और आराध्य शक्ति में बदल देती है, और यही मानवीय जीवन का सबसे महान और सच्चा देवत्व है।



1. निम्नलिखित वाक्यों में उपयुक्त विराम-चिह्न लगाओ

(क) महाभारत एक महान ग्रंथ है। — (पूर्ण विराम)

(ख) युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव पाँच भाई थे। — (अल्प विराम और पूर्ण विराम)

(ग) भारत में कुल कितने प्रदेश हैं? — (प्रश्नसूचक चिह्न)

(घ) रामधारी सिंह दिनकर राष्ट्रकवि थे। — (पूर्ण विराम)

(ङ) कर्ण ने कहा, “मित्रता सुखद छाया है।” — (अल्प विराम और उद्धरण चिह्न)





2. योग्यता-विस्तार (Extension Activities)

ये प्रश्न रचनात्मक लेखन, आलोचनात्मक चिंतन और तुलनात्मक अध्ययन पर आधारित हैं। इनके उत्तर विद्यार्थी के व्यक्तिगत प्रयास और विचार पर निर्भर करते हैं।

मिट्टी और मनुष्य के अटूट संबंध के विषय में एक छोटा-सा लेख लिखो।
→ यह लेख कविता के भाव पर आधारित होगा, जिसमें मिट्टी को मातृरूपा, प्रियारूपा, प्रजारूपा और शक्ति रूप में दर्शाया गया है।

“देवत्व कोई अलौकिक वस्तु नहीं, बल्कि वह मनुष्य का पुरुषार्थ ही है” — इस विषय पर अपना विचार प्रकट करो।
→ यह प्रश्न कविता के केंद्रीय विचार पर आधारित है — पुरुषार्थ ही सबसे बड़ा देवत्व है।

शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ की ‘मिट्टी की महिमा’ कविता को खोजकर पढ़ो और प्रस्तुत कविता से उसकी तुलना करो।
→ इसके लिए बाहरी शोध और तुलनात्मक विश्लेषण आवश्यक है, जिससे दोनों कविताओं के विचारों में समानता और भिन्नता का अध्ययन किया जा सके।





3. शब्दार्थ एवं टिप्पणी (Glossary)

मात्र — केवल

कुंभ-कलश — घड़ा, कलसा

मृत्तिका — मिट्टी

विदीर्ण करना — चीरना, फाड़ना

अंतरंग — घनिष्ट, निकटतम

जल लाती — घड़े में जल भरकर लाने वाली प्रिया, जीवन में सरसता का संचार करने वाली

मातृरूपा — माँ-जैसी

प्रजारूपा — संतान-जैसी

स्वत्व — अधिकार

ग्राम्यदेव — लोक देवता, ग्रामवासियों के देवता

चिन्मयी शक्ति — ईश्वर की सत्ता, चेतनमयी शक्ति

आराध्य — आराधना के योग्य

पुरुषार्थ — उद्योग, उद्यम

पुरुषार्थ-पराजित स्वत्व से — उद्योग द्वारा अहंभाव का त्याग करते हुए

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