नींव की ईंट’ Chapter – 1, Class -10, SEBA, NCERT, CBSE

नींव की ईंट’ Chapter – 1

पाठ ‘नींव की ईंट’ Chapter – 1, की अभ्यासमाला के सभी प्रश्नों के उत्तर दिए गए हैं —




1. पूर्ण वाक्य में उत्तर दो :

(क) रामवृक्ष बेनीपुरी का जन्म कहाँ हुआ था?
रामवृक्ष बेनीपुरी का जन्म बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के अंतर्गत बेनीपुर नामक गाँव में हुआ था।

(ख) बेनीपुरी जी को जेल की यात्राएँ क्यों करनी पड़ी थी?
बेनीपुरी जी को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सक्रिय सेनानी के रूप में महात्मा गाँधी के असहयोग आन्दोलन में कूदने के कारण जेल की यात्राएँ करनी पड़ी थी।

(ग) बेनीपुरी जी का स्वर्गवास कब हुआ था?
बेनीपुरी जी का स्वर्गवास 1968 ई. में हुआ था।

(घ) चमकीली, सुंदर, सुघड़ इमारत वस्तुतः किस पर टिकी होती है?
चमकीली, सुंदर, सुघड़ इमारत वस्तुतः उसकी नींव पर टिकी होती है।

(ङ) दुनिया का ध्यान सामान्यतः किस पर जाता है?
दुनिया का ध्यान सामान्यतः चकमक (चमकीलापन) और ऊपर के आवरण पर जाता है।

(च) नींव की ईंट को हिला देने का परिणाम क्या होगा?
नींव की ईंट को हिला देने का परिणाम यह होगा कि कंगूरा बेतहाशा जमीन पर आ रहेगा।

(छ) सुंदर सृष्टि हमेशा ही क्या खोजती है?
सुंदर सृष्टि हमेशा ही बलिदान खोजती है, चाहे वह ईंट का हो या व्यक्ति का।

(ज) लेखक के अनुसार गिरजाघरों के कलश वस्तुतः किनकी शहादत से चमकते हैं?
लेखक के अनुसार गिरजाघरों के कलश वस्तुतः उन अनाम शहीदों की शहादत से चमकते हैं जिन्होंने ईसाई धर्म के प्रचार में अपने को उत्सर्ग कर दिया और नींव की ईंट बने।

(झ) आज किसके लिए चारों ओर होड़ा-होड़ी मची है?
आज कंगूरा बनने के लिए चारों ओर होड़ा-होड़ी मची है।

(ञ) पठित निबंध में ‘सुंदर इमारत’ का आशय क्या है?
पठित निबंध में ‘सुंदर इमारत’ का आशय नया सुंदर समाज है।




2. अति संक्षिप्त उत्तर दो (लगभग 25 शब्दों में)

(क) मनुष्य सत्य से क्यों भागता है?
मनुष्य सत्य से इसलिए भागता है क्योंकि सत्य कठोर होता है और कठोरता के साथ ही भद्दापन भी जुड़ा होता है, जिससे मनुष्य मुख मोड़ता है।

(ख) लेखक के अनुसार कौन-सी ईंट अधिक धन्य है?
लेखक के अनुसार वह ईंट अधिक धन्य है जो जमीन के सात हाथ नीचे जाकर गड़ गई और इमारत की पहली ईंट बनी, क्योंकि उसी पर पूरी इमारत की मजबूती निर्भर करती है।

(ग) नींव की ईंट की क्या भूमिका होती है?
नींव की ईंट की भूमिका पूरी इमारत को मजबूती और पुख्तापन प्रदान करने की होती है। वह अपना अस्तित्व विलीन करके ऊपर की सुंदर सृष्टि को आधार देती है, ताकि इमारत ज़मीन के सौ हाथ ऊपर तक जा सके।

(घ) कंगूरे की ईंट की भूमिका स्पष्ट करो।
कंगूरे की ईंट की भूमिका इमारत के सबसे ऊपरी और चमकीले भाग के रूप में होती है, जो कट-छँटकर ऊपर चढ़ती है और लोक-लोचनों को अपनी ओर आकृष्ट करती है तथा प्रसिद्धि पाती है।

(ङ) शहादत का लाल सेहरा कौन-से लोग पहनते हैं और क्यों?
शहादत का लाल सेहरा तपे-तपाए लोग पहनते हैं, जो बिना किसी यश-लोभ के, मौन-मूक बलिदान के लिए प्रस्तुत हैं, ताकि सुंदर समाज का निर्माण हो सके।

(च) लेखक के अनुसार ईसाई धर्म को किन लोगों ने अमर बनाया और कैसे?
लेखक के अनुसार ईसाई धर्म को उन अनाम लोगों ने अमर बनाया, जिन्होंने उस धर्म के प्रचार में अपने को अनाम उत्सर्ग कर दिया, भूख-प्यास या जंगली जानवरों के शिकार हुए पर उनकी चर्चा कहीं नहीं होती।

(छ) आज देश के नौजवानों के समक्ष चुनौती क्या है?
आज देश के नौजवानों के समक्ष चुनौती यह है कि वे कंगूरा बनने की होड़ा-होड़ी छोड़कर, नींव की ईंट बनने की कामना लेकर आगे आएँ और देश के नव-निर्माण के काम में अपने को चुपचाप खपा दें।




3. संक्षिप्त उत्तर दो (लगभग 50 शब्दों में)

(क) मनुष्य सुंदर इमारत के कंगूरे को तो देखा करते हैं, पर उसकी नींव की ओर उनका ध्यान क्यों नहीं जाता?
मनुष्य सुंदर इमारत के कंगूरे को देखते हैं क्योंकि वह चमकीला, सुंदर और सुघड़ होता है और लोक-लोचनों को आकृष्ट करता है। नींव जमीन के नीचे का ठोस सत्य होती है, जो कठोर और भद्दापन लिए होती है, जिससे मनुष्य भागता है। इसलिए उसका ध्यान नींव की ओर नहीं जाता।

(ख) लेखक ने कंगूरे के गीत गाने के बजाय नींव के गीत गाने के लिए क्यों आह्वान किया है?
लेखक ने नींव के गीत गाने के लिए आह्वान किया है क्योंकि इमारत की मजबूती और अस्तित्व नींव की ईंट के पुख्तेपन पर निर्भर करते हैं। कंगूरा तो शोहरत पाता है, पर बलिदान नींव की ईंट देती है। लेखक उस अनाम बलिदान को महत्व देना चाहता है जिस पर सुंदर सृष्टि टिकी है।

(ग) सामान्यतः लोग कंगूरे की ईंट बनना तो पसंद करते हैं, परंतु नींव की ईंट बनना क्यों नहीं चाहते?
सामान्यतः लोग कंगूरे की ईंट बनना इसलिए पसंद करते हैं क्योंकि यह प्रसिद्धि, प्रशंसा, यश और शोहरत दिलाती है। नींव की ईंट बनना मौन-मूक बलिदान माँगता है, जिसमें अंधकूप और अस्तित्व-विलय होता है। लोग यश-लोभी हैं, इसलिए कंगूरा बनने की होड़ा-होड़ी मची है।

(घ) लेखक ईसाई धर्म को अमर बनाने का श्रेय किन्हें देना चाहता है और क्यों?
लेखक ईसाई धर्म को अमर बनाने का श्रेय उन अनाम उत्सर्ग करने वाले लोगों को देना चाहता है, जिन्होंने भूख-प्यास, सूली या जिंदा जलाए जाने जैसे कष्ट सहकर चुपचाप अपना बलिदान दिया। वे नींव की ईंट की तरह थे, जिनके पुण्य-प्रताप से ईसाई धर्म फल-फूल रहा है।

(ङ) हमारा देश किनके बलिदानों के कारण आजाद हुआ?
हमारा देश केवल उन बलिदानों से नहीं आजाद हुआ जिन्हें इतिहास में स्थान मिला। यह देश उन अनाम दधीचि जैसे लोगों के बलिदानों से आजाद हुआ, जिनकी हड्डियों के दान ने विदेशी वृत्रासुर (अंग्रेजों) का नाश किया। वे लोग चुपचाप देश के कोने-कोने में बलिदान हुए और नींव की ईंट बने।

(च) दधीचि मुनि ने किसलिए और किस प्रकार अपना बलिदान किया था?
दधीचि मुनि ने देवताओं के हित और वृत्रासुर के संहार हेतु अपनी अस्थियों का बलिदान किया था। उनकी अस्थियों से बने वज्र से ही वृत्रासुर का नाश संभव था। उन्होंने लोकहित को सर्वोपरि मानकर शरीर त्याग दिया और अपनी अस्थियाँ दान कर दीं।

(छ) भारत के नव-निर्माण के बारे में लेखक ने क्या कहा है?
लेखक ने कहा है कि भारत के गाँवों और शहरों का नव-निर्माण कोई शासक नहीं कर सकता। इसके लिए ऐसे नौजवान चाहिए जो कंगूरा बनने की वासना छोड़कर निस्वार्थ भाव से, बिना शाबाशी के, देश के निर्माण में अपने को खपा दें।

(ज) ‘नींव की ईंट’ शीर्षक निबंध का संदेश क्या है?
‘नींव की ईंट’ निबंध का संदेश है कि समाज का नव-निर्माण मौन-मूक बलिदान और निस्वार्थ सेवा पर टिका है। लेखक युवाओं को यश-लोभ छोड़कर अनाम सेवा और आत्म-बलिदान से राष्ट्र-निर्माण में योगदान देने की प्रेरणा देता है।




4. सम्यक् उत्तर दो (लगभग 100 शब्दों में)

(क) ‘नींव की ईंट’ का प्रतीकार्थ स्पष्ट करो।
‘नींव की ईंट’ का प्रतीकार्थ है समाज का वह अनाम शहीद या निस्वार्थ सेवक जो बिना किसी प्रसिद्धि की इच्छा के चुपचाप बलिदान देता है। जैसे नींव की ईंट सात हाथ नीचे गड़कर अपना अस्तित्व मिटा देती है, वैसे ही ऐसे व्यक्ति समाज की बुनियाद को मजबूत करते हैं। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के सैनिक इसी नींव की ईंट के समान थे जिन्होंने मौन बलिदान देकर देश को स्वतंत्रता का आधार दिया।

(ख) ‘कंगूरे की ईंट’ के प्रतीकार्थ पर सम्यक् प्रकाश डालो।
‘कंगूरे की ईंट’ का प्रतीकार्थ है समाज का वह व्यक्ति जो यश और शोहरत की कामना रखता है। यह इमारत का ऊपरी चमकीला भाग होता है जो सबका ध्यान आकर्षित करता है। प्रतीक रूप में यह उन लोगों का प्रतिनिधित्व करता है जो प्रसिद्धि या स्वार्थवश कार्य करते हैं। लेखक कहता है कि आज समाज में कंगूरा बनने की होड़ा-होड़ी है और नींव की ईंट बनने की भावना घट रही है।

(ग) “हाँ, शहादत और मौन-मूक! समाज की आधारशिला यही होती है” — का आशय बताओ।
इस कथन का आशय है कि किसी भी महान समाज या संस्था का असली आधार प्रसिद्धि नहीं, बल्कि मौन निस्वार्थ बलिदान होता है। ‘शहादत’ का अर्थ है त्याग और ‘मौन-मूक’ का अर्थ है बिना दिखावे के किया गया बलिदान। जैसे ईसाई धर्म को अमर बनाने वाले अनाम लोग नींव की ईंट बने, वैसे ही हर समाज की नींव ऐसे ही त्याग पर टिकी रहती है।




5. सप्रसंग व्याख्या करो

(क) “हम कठोरता से भागते हैं, भद्देपन से मुख मोड़ते हैं, इसीलिए सच से भी भागते हैं।”
संदर्भ – यह पंक्ति रामवृक्ष बेनीपुरी के निबंध ‘नींव की ईंट’ से ली गई है।
प्रसंग – लेखक बताते हैं कि लोग इमारत के कंगूरों की ओर देखते हैं, नींव के ठोस सत्य की ओर नहीं।
व्याख्या – सत्य कठोर और भद्दा होता है, इसलिए लोग उससे दूर भागते हैं। नींव की ईंट कठोर और भद्दी होते हुए भी इमारत की असली ताकत है, पर मनुष्य दिखावटी सुंदरता को ही महत्व देता है। यही कारण है कि वह सच्चे आधार की उपेक्षा करता है।

(ख) “सुंदर सृष्टि! सुंदर सृष्टि, हमेशा बलिदान खोजती है, बलिदान ईंट का हो या व्यक्ति का।”
संदर्भ – यह पंक्ति ‘नींव की ईंट’ निबंध से ली गई है।
प्रसंग – लेखक त्याग और बलिदान की महत्ता पर विचार कर रहे हैं।
व्याख्या – चाहे इमारत हो या समाज, उसकी सृष्टि बलिदान से ही संभव है। ईंट ज़मीन में गड़कर अपना अस्तित्व मिटाती है, व्यक्ति यश-लोभ त्यागकर समाज की सेवा करता है। बलिदान ही सृष्टि की नींव है।

(ग) “अफसोस, कंगूरा बनने के लिए चारों ओर होड़ा-होड़ी मची है, नींव की ईंट बनने की कामना लुप्त हो रही है!”
संदर्भ – यह पंक्ति ‘नींव की ईंट’ से ली गई है।
प्रसंग – लेखक समाज की स्वार्थी प्रवृत्ति पर खेद व्यक्त करते हैं।
व्याख्या – आज हर व्यक्ति प्रसिद्धि और यश पाने की दौड़ में लगा है। कोई भी निस्वार्थ भाव से देश या समाज के लिए चुपचाप काम नहीं करना चाहता। यह स्थिति लेखक को दुख देती है, क्योंकि सच्चा राष्ट्र-निर्माण मौन सेवा से ही संभव है।




6. भाषा एवं व्याकरण-ज्ञान

1. अरबी-फारसी के शब्द —
इमारत, दुनिया, जमीन, मुनहसिर, अस्तित्व, शहादत, आवरण, रोशनी, बलिदान, अफसोस, शोहरत, आजाद।


2. वाक्य निर्माण —



चमकीली: दिवाली पर बच्चों ने चमकीली लड़ियाँ लगाईं।

कठोरता: सत्य में अक्सर कठोरता और भद्दापन साथ-साथ होते हैं।

बेतहाशा: नींव की ईंट हटाते ही कंगूरा बेतहाशा नीचे आ गिरा।

भयानक: कितने ही धर्म प्रचारक भयानक भूख-प्यास के शिकार हुए।

गिरजाघर: ईसाई धर्म उन्हीं नींव की ईंटों के बलिदान से खड़ा है, जिनके गिरजाघर के कलश चमकते हैं।

इतिहास: जिन्होंने अनाम उत्सर्ग किया, उनके नाम शायद ही इतिहास में लिखे गए हों।


3. वाक्य शुद्धि —



नहीं तो, हम इमारत की गीत नींव की गीत से प्रारंभ करते।
शुद्ध: नहीं तो, हम इमारत का गीत नींव के गीत से प्रारंभ करते।

ईसाई धर्म उन्हीं के पुण्य-प्रताप से फल-फूल रहे हैं।
शुद्ध: ईसाई धर्म उन्हीं के पुण्य-प्रताप से फल-फूल रहा है।

सदियों के बाद नए समाज की सृष्टि की ओर हम पहला कदम बढ़ाए हैं।
शुद्ध: सदियों के बाद नए समाज की सृष्टि की ओर हम पहला कदम बढ़ाया है।

हमारे शरीर पर कई अंग होते हैं।
शुद्ध: हमारे शरीर में कई अंग होते हैं।

हम निम्नलिखित रूपनगर के निवासी प्रार्थना करते हैं।
शुद्ध: हम रूपनगर के निम्नलिखित निवासी प्रार्थना करते हैं।

सब ताजमहल की सौंदर्यता पर मोहित होते हैं।
शुद्ध: सब ताजमहल के सौंदर्य पर मोहित होते हैं।

गत रविवार को वह मुंबई जाएगा।
शुद्ध: आगामी रविवार को वह मुंबई जाएगा।

आप कृपया हमारे घर आने की कृपा करें।
शुद्ध: आप कृपया हमारे घर आएँ।

हमें अभी बहुत बातें सीखना है।
शुद्ध: हमें अभी बहुत बातें सीखनी हैं।

मुझे यह निबंध पढ़कर आनंद का आभास हुआ।
शुद्ध: मुझे यह निबंध पढ़कर आनंद हुआ।


4. लोकोक्तियों का भाव-पल्लवन —



अधजल गगरी छलकत जाए —
यह लोकोक्ति बताती है कि कम ज्ञान या धन वाला व्यक्ति उसका प्रदर्शन अधिक करता है। जैसे आधी भरी गगरी छलकती है, वैसे ही अल्पज्ञानी व्यक्ति अधिक बोलता है, जबकि ज्ञानी व्यक्ति शांत रहता है।

होनहार बिरबान के होत चिकने पात —
इसका अर्थ है कि महान व्यक्ति की प्रतिभा बचपन से ही झलक जाती है। जैसे पौधे के चिकने पत्ते अच्छे वृक्ष का संकेत देते हैं, वैसे ही प्रतिभाशाली बालक के गुण प्रारंभ से दिखाई देते हैं।

अब पछताए क्या होत जब चिड़िया चुग गई खेत —
यह लोकोक्ति कहती है कि समय निकल जाने के बाद पछताना व्यर्थ है। व्यक्ति को समय रहते कार्य करना चाहिए, अन्यथा पछताने से कुछ नहीं होता।

जाको राखे साइयाँ मार सके न कोय —
इसका भाव है कि जिसे ईश्वर स्वयं रक्षा करता है, उसे कोई हानि नहीं पहुँचा सकता। यह ईश्वर पर विश्वास और धैर्य रखने की प्रेरणा देती है।


5. दो-दो अर्थ —



अंबर — आकाश / वस्त्र

उत्तर — जवाब / दिशा

काल — समय / मृत्यु

नव — नया / नौ

पत्र — चिट्ठी / पत्ता

मित्र — दोस्त / सूर्य

वर्ण — अक्षर / रंग

हार — पराजय / माला

कल — आने वाला या बीता दिन / मशीन

कनक — सोना / धतूरा


6. शब्द-जोड़ी का अंतर —



अगम-दुर्गम — अगम वह जहाँ पहुँचना असंभव हो; दुर्गम जहाँ पहुँचना कठिन हो।

अपराध-पाप — अपराध कानून का उल्लंघन; पाप नैतिक या धार्मिक दृष्टि से अशुभ कार्य।

अस्त्र-शस्त्र — अस्त्र फेंककर चलाया जाने वाला हथियार; शस्त्र हाथ में पकड़कर चलाया जाने वाला हथियार।

आधि-व्याधि — आधि मानसिक पीड़ा; व्याधि शारीरिक रोग।

दुख-खेद — दुख गहरी पीड़ा; खेद हल्का अफसोस।

स्त्री-पत्नी — स्त्री समस्त महिला जाति; पत्नी विवाहित स्त्री।

आज्ञा-अनुमति — आज्ञा बड़ों द्वारा दी गई अनिवार्य आज्ञा; अनुमति कार्य की स्वीकृति।

अहंकार-गर्व — अहंकार नकारात्मक घमंड; गर्व सकारात्मक आत्म-सम्मान का भाव।

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